अनुभूति में
प्रमोद कुमार सुमन की रचनाएँ-
गीतों में-
अर्थ-श्रम
दुर्दशा
पड़ोसी
प्रेरणा
धूप की स्वर्णिम किरण |
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पड़ोसी
भूल के बीती बातों को
हाथ में लेकर हाथों को
चलना है उस गाँव
साथी! चलना है उस गाँव।
जिस दो राहे पर हम दोनों
अलग हुए थे रस्ते में
दिल की धड़कन बेच दिया था
सौदागर को सस्ते में
जोड़ दिलों के तारों को
तोड़ के सब दीवारों को
चलना है उस गाँव
साथी! चलना है उस गाँव।
बँटवारे की नींव खोदकर
नफ़रत के जो पेड़ लगे।
हमने सींचा उन्हें लहू से
और रहे सब ठगे-ठगे
खोल के दिल के तालों को
काट मजहबी डालों को
चलना है उस गाँव
साथी! चलना है उस गाँव।
जो कुछ तुमने झेला है
वह सब हमने भी झेला था
उस पीड़ा को ढोने वाला
तू ही नहीं अकेला था
भूल के उन आघातों को
काली सूनी रातों को
चलना है उस गाँव
साथी! चलना है उस गाँव।
भाईचारे की मिट्टी से
घर इक नया बनाएँगे
नफ़रत की आँधी से हम-सब
मिलकर उसे बचाएँगे
लाँघ के सब रेखाओं को
हाथ में ले के ध्वजाओं को
चलना है उस गाँव
साथी! चलना है उस गाँव।
सबकी खुशियों की शहनाई
बजती हो जिस गाँव में
प्रेम-मुहब्बत की पुरवाई
बहती हो जिस गाँव में
गाल पे रखकर गालों को
'सुमन' सभी मतवालों को
चलना है उस गाँव
साथी! चलना है उस गाँव।
१ जून २०१६ |