अनुभूति में
प्रमोद कुमार सुमन की रचनाएँ-
गीतों में-
अर्थ-श्रम
दुर्दशा
पड़ोसी
प्रेरणा
धूप की स्वर्णिम किरण |
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दुर्दशा
मैं बादल का नन्हा टुकड़ा
सारी धरती प्यासी-प्यासी
कैसे प्यास बुझा पाऊँगा।
बचपन गया जवानी आई
लगी ऊँघने अब तरुणाई
वृद्धावस्था के आँगन में
खड़ी मौत की है परछाई
अपनी धरती की मिट्टी का
कैसे कर्ज़ चुका पाऊँगा।
शीश माँगते उत्तर वाले
दक्षिण पैरों के मतवाले
दोनों हाथों का बँटवारा
करते पूरब-पश्चिम वाले
मानचित्र के काट-छाँट का
कैसे दर्द भुला पाऊँगा।
सोने की चिड़िया रोती है
कटे पंख का गम ढोती है
मानसरोवर सूख रहा है
कामधेनु भूखी सोती है
जन-गण-मन का विश्वमंच पर
कैसे गान सुना पाऊँगा।
घर गिरवी बिक गई खाट है
उजड़ा छप्पर नहीं टाट है
स्वप्न देख रोटी का जिनकी
आज हुई निद्रा उचाट है
आश्वासन की थपकी देकर
कैसे उन्हें सुला पाऊँगा।
नित्य हरण होती है सीता
राम पराजित रावण जीता
कृष्ण-कन्हैया के चरणों में
आँसू बहा रही है गीता
भारत माता की चुनरी का
कैसे दाग छुड़ा पाऊँगा।
१ जून २०१६ |