अनुभूति में
पद्मा मिश्रा की रचनाएँ-
गीतों में-
गीत नया
नया सन्देश लेकर
पुरवा लहराई है
तुम छू लो कंचन हो जाऊँ
मन फागुन फागुन हो जाए |
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तुम छू लो
कंचन हो जाऊँ
तुम पारस मैं अयस अपावन,
तुम छू लो कंचन हो जाऊँ
अब मन का आकाश खुला है
तुम आओ पावन हो जाऊँ
अक्षर अक्षर बाँध लिया है
स्नेह सुमन मुक्ताहरों से,
अंतर अंतर भींग रहा है
नेह-वारि के भावकणों से
माँ नयनों में आँसू बन कर
बरसो तुम, मधुमय हो जाऊँ
जग सोता है घोर तिमिर में
मेरे नयन जागृत रहते
मधुर कल्पना के पंखों पर
स्वप्न हजारों तिरते रहते
एकाकी मन के त्रिभुवन में
ज्योतिर्मय तुम, दीप जलाऊँ
मेरी सृजन शक्ति की राहें,
निर्भय हों, उन्मुक्त गगन दो
पथ के सारे शूल सरल हों,
मानवता का पथ निर्मल दो,
बन चन्दन-कीगंध पावनी,
परसो मन, सुरभित हो जाऊँ
१ अगस्त २०२३ |