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सुबहें
भी देखेंगे
भोर खोजने निकले हम
काँधों पर लादे हैं--
बोझिल परकटी शाम
जीवन लेखा है--
कुछ बासी संदर्भों का
है कारावास अभी बाकी कुछ गर्भों का
धोखा है-- चमकीला, दर्शनीय, तामझाम
काँधों पर लादे हैं--
बोझिल परकटी शाम
पैरों में चक्कर है
आदमी मुसाफ़िर है
हार मान कर निराश जो होता काफ़िर है
जीते जी जीवन में क्यों कोई ले विराम
काँधों पर लादे हैं
बोझिल परकटी शाम
स्याही- धुल जाएगी
सुबहें भी देखेंगे
आशा है चल-चल कर मंजिल पर पहुँचेंगे
सीता मिल जाती है धनुष लिये रहें राम
काँधों पर लादे हैं
बोझिल परकटी शाम
१ अगस्त २०२२
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