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गीत के
शगूफ़े
गीतमय शगूफ़ों से
जीवन होता ललित-ललाम
यन्त्रों की रेल-पेल
शोर की अधिकता है
लोहे की बस्ती तो गहन वास्तविकता है
लेकिन इसका ऐसा अर्थ नहीं--
संध्या या भोर के मदिर-मस्त रंगों को
हम कह दें- आखिरी सलाम
गीतमय शगूफ़ों से
जीवन होता ललित-ललाम
धरती है त्रस्त बहुत
ऐटमी धमाकों से
पहियों पर आ निकले दूर, हम पिनाकों से
हृदय हुए संवेदनशून्य यहाँ
भीड़ें रोबोटों की संकट संस्कृतिगत है
काव्य रहे कैसे-- उपराम
गीतमय शगूफ़ों से
जीवन होता ललित-ललाम
१ अगस्त २०२२
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