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अनुभूति में निर्मल विनोद की रचनाएँ-

गीतों में-
अस्थायी विवशता
गीत के शगूफे
बंधु लिखो छंद
यात्राओं के दंश
सुबहें भी देखेंगे

 

गीत के शगूफ़े

गीतमय शगूफ़ों से
जीवन होता ललित-ललाम

यन्त्रों की रेल-पेल
शोर की अधिकता है
लोहे की बस्ती तो गहन वास्तविकता है
लेकिन इसका ऐसा अर्थ नहीं--
संध्या या भोर के मदिर-मस्त रंगों को
हम कह दें- आखिरी सलाम

गीतमय शगूफ़ों से
जीवन होता ललित-ललाम

धरती है त्रस्त बहुत
ऐटमी धमाकों से
पहियों पर आ निकले दूर, हम पिनाकों से
हृदय हुए संवेदनशून्य यहाँ
भीड़ें रोबोटों की संकट संस्कृतिगत है
काव्य रहे कैसे-- उपराम

गीतमय शगूफ़ों से
जीवन होता ललित-ललाम

१ अगस्त २०२२

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