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अनुभूति में निर्मल विनोद की रचनाएँ-

गीतों में-
अस्थायी विवशता
गीत के शगूफे
बंधु लिखो छंद
यात्राओं के दंश
सुबहें भी देखेंगे

 

अस्थायी विवशता

हाशिए का चिह्न बनना
बहुत अस्थायी विवशता है

संकुचित-सा
एक चहबच्चा बने रहना
सिर्फ़ सड़ना
नहीं बहना
यह स्वभाव नहीं
जो रुकें चट्टान से
हम वे बहाव नहीं
रक्त में उद्दाम सिंधु-नद उमगता है

बेलपट-सा
चिता पर चुपचाप दहना
मृत्यु का सब त्रास सहना
यह स्वभाव नहीं
जो निपट ठंडे रहें
हम वे अलाव नहीं
हृदय में ज्वालामुखी रहता धधकता है

१ अगस्त २०२२

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