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तन्वंगी यह नदी धार
पर्वत भैया अभी खेत से
लौटे, खड़े हुए,
तन्वंगी यह नदी धार
भौजी-सी भली लगे
बार-बार लोनी लहरों की
चूनर सरकाए,
नई उमर का गीत सलोना
बस गाती जाए,
क्षण भर गहन गँभीर, दूसरे
क्षण मनचली लगे
बहती जाए देह कि जैसे
अंतहीन आँधी,
पीछे-पीछे दौड़ लगाती
हवा बनी बाँदी,
प्यासे तटबंधों को तो
मिसरी की डली लगे
जहाँ मिले पौधे शरारती
ख़ूब गए डाँटे
मीठे चुम्बन हरियाली को
किन्तु गए बाँटे
तनिक परस ही पेड़ों को
सुख की अंजली लगे
१४ मई २०१२ |