सप्तवर्णी मेघ
सप्तवर्णी मेघ लाये
यक्ष का सन्देश
मैं अकेला ही नहीं
भोगता निर्वास
और भी बेघर बहुत हैं
ढूँढ़ते आवास
बंद फ़ाइल में पड़े आदेश
दो जून रोटी का सहारा
चाहते असहाय
लम्बी कतारों में खड़े
पाँव से निरुपाय
पुनः उनके मिले निर्देश
ढूँढती सुत को कहीं
वृद्धा मिली
छान डाली गाँव की
हर गली
अपहृत हुआ सर्वेश
अफसर बड़े नामी गिरामी
टेढ़ी नजर से भाँपते
छोटे बड़े ओहदे
फिरौती माँगते
हाथ में दो चूड़ियाँ हैं शेष
सम्हल कर तुम बैठना
जलज सी सुकुमार
कहते बहारें हो रहीं बीमार
सौदामिनी के खुल चुके
सौ बार श्यामल केश
९ फरवरी
२०१५
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