अलगाव के
आख्यान
कहाँ की बात करते हो
किसे तुम याद करते हो
अलावों पर यहाँ
अलगाव के
आख्यान चलते हैं
बड़बड़ाती बड़ बहू
छुट बहू का मुँह खुला
रात दिन बर्तन खटकते
चल रहा शिकवा गिला
लाड़ले अपने यहाँ
अनजान लगते हैं।
पेशी कचहरी बहस बहरी
रोज के किस्से हुए
एक पीढ़ी के यहाँ
सैकड़ों हिस्से हुए
डंगरों से गए गुजरे
इंसान बसते हैं।
याद करते हो
तलैया ताल पीपल छाँव
झाँक कर देखो
फटे पगडंडियों के पाँव
गोदाम की हसरत लिए
खलिहान सड़ते हैं।
९ फरवरी
२०१५
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