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फसल नहीं हो
पायी
आसों फसल नहीं हो पायी
फिर बड़की का ब्याह रह गया
छुटकी के अंकुरित स्वप्न पर
पाला मार गया
शहरी-शिक्षा पाने का सपना
फिर हार गया
आस लगी थी पक्की छत की
दीमक चटी नई चौखट की
शौचालय आँगन बनवाना
वह फिर टार गया
धनिया ने धोती रँगवायी
रेशम साड़ी प्यार रह गया
पपुआ कंचा छोड़ क्रिकेट के
लिए ठुनकता है
नई साइकिल की खातिर
हर रोज मचलता है
बस्ता फटा किताबें भीगें
पिता तरस खाए
पैंट, लगा पैबंद पहन वह
रोज निकलता है
नहिं अम्मा को मिली दवाई
भीतर बसा बुखार रह गया
१ जून २०१९ |