अनुभूति में
मंजुलता श्रीवास्तव की रचनाएँ-
गीतों में-
आजकल पंछी
एक गीत प्रीत का
क्वार का है सुखद आना
फसल नहीं हो पायी
मन बटोही |
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एक गीत प्रीत का
नेह की बंजर धरा
शृंगार की बूँदों से सीचें
आओ प्रिय!
हम शुष्क-जीवन में तनिक
भाव-सरिताएँ उलीचें
सूर्य के आतप से इनमें
यदि दरारें पड़ गईं
जंगली दूषित हवाएँ
धूल-धुसरित कर गईं
फिर बबूले ही उठेगें
देह की तपती छुवन में
इसलिए प्रिय!
सावनी-मनुहार लेकर
मुट्ठियों में प्रेम का
वह गीत भींचें
आओ प्रिय!
हम शुष्क जीवन में तनिक
भाव सरिताएँ उलीचें
कंक्रीटों की नदी के
कूल बन दो
हम चलें पाषाण को भी
दर्द तब हो
दंश के ही पल पलेंगें
आत्मा के शांति तल में
चाह है प्रिय!
रूप की पतवार लेकर
आज आओ
बाँध की हम रज्जु खींचें
आओ प्रिय!
हम शुष्क जीवन में तनिक
भाव सरिताएँ उलीचें
अनमनी सी रात ठहरे
जब हमारे बीच में।
नींद पैताने पर बैठी
ऊँघ रही गलीच में
मौन के पहरे लगे हों
मुखर रागों के महल में
पददलित कर 'अहम' अपने
जीत को भर बाँह में
सत्कार संग, तब नयन मींचें
आओ प्रिय!
हम शुष्क-जीवन में तनिक
भाव सरिताएँ उलीचें
१ जून २०१९ |