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अनुभूति में मंजुलता श्रीवास्तव की रचनाएँ-

गीतों में-
आजकल पंछी
एक गीत प्रीत का
क्वार का है सुखद आना
फसल नहीं हो पायी
मन बटोही

  आजकल पंछी

आजकल पंछी नगर को
भूलने में लग गए हैं

नेह के बिरवा रहे ना
पोखरों ऊपर इमारत
क्रोड़ में किसके बिताएँ
वे भला अब साँझ आरत
अहं के विषमय पवन को
छोड़ने में लग गए हैं

दूर के देशों में मिलता
है, बहुत दाना औ' पानी
ऑक्सीजन शुद्ध वायु
झूमकर मिलती सुहानी
कोटरों के द्वार पर
उन्मुक्त पहरे लग गए हैं

छल-प्रपंचों की इबारत
लिख गई मन की सतह पर
चित्र मिथ्या रच रहे हैं
सत्य के धुँधले फलक पर
इसलिए घबरा नया
आकाश चुनने लग गए हैं

१ जून २०१९

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