अनुभूति में
महेंद्र भटनागर की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अभिलषित
आसक्ति
गौरैया
पाताल पानी की उपत्यका से
गीतों में-
उत्सर्ग
एक दिन
जीने के लिए
दीपक
धन्यवाद
बस तुम्हारी याद
भीगी भीगी भारी रात
शुभैषी
सहसा
यह न समझो
कविताओं में-
आस्था
ओ भवितव्य के अश्वों!
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शुभैषी
बद्दुआओं का
असर होता अगर,
वीरान
यह आलम
कभी का ।
हो गया होता !
जाग उठता
हर कदम पर
आदमी का दर्प-दुर्वासा!
चिरंतन
प्रेम का सोता
रसातल में
कभी का
खो गया होता!
कहाँ हो तुम
पुनीत शकुंतले!
अभिशाप की
जीवंत पंकिल प्रतिक्रिया!
कहाँ हो तुम?
24 दिसंबर 2007
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