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अनुभूति में महेंद्र भटनागर की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
अभिलषित
आसक्ति
गौरैया
पाताल पानी की उपत्यका से

गीतों में-
उत्सर्
एक दिन
जीने के लिए
दीपक
धन्यवाद
बस तुम्हारी याद
भीगी भीगी भारी रात

शुभैषी
सहसा
यह न समझो

कविताओं में-
आस्था
ओ भवितव्य के अश्वों!

  बस, तुम्हारी याद

आज यह बेहद पुरानी बात की
ध्यान में फिर बन रही तसवीर क्यों?
आज फिर से उस विदा की रात-सा
आ रहा है नयन में यह नीर क्यों?
सिर्फ़ जब उन्माद मेरे साथ है!
बस, तुम्हारी याद मेरे साथ है!

कह रही है हूक भर यह चातकी
'प्रेम का यह पंथ है कितना कठिन,
विश्व बाधक देख पाता है नहीं
शेष रहती भूल जाने की जलन!'
बस, यही फ़रियाद मेरे साथ है!
बस, तुम्हारी याद मेरे साथ है!

पर, तुम्हारी याद जीवन-साध की
वह अमिट रेखा बनी सिन्दूर की,
आज जिसके सामने किंचित नहीं
प्राण को चिंता तुम्हारे दूर की,
देखने को चाँद मेरे साथ है!
बस, तुम्हारी याद मेरे साथ है!

२३ फरवरी २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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