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अनुभूति में महेंद्र भटनागर की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
अभिलषित
आसक्ति
गौरैया
पाताल पानी की उपत्यका से

गीतों में-
उत्सर्
एक दिन
जीने के लिए
दीपक
धन्यवाद
बस तुम्हारी याद
भीगी भीगी भारी रात

शुभैषी
सहसा
यह न समझो

कविताओं में-
आस्था
ओ भवितव्य के अश्वों!

 

धन्यवाद

दो क्षण सम्पुट अधरों को जो
तुमने दी खिलते शतदल-सी मुसकान,
कृपा तुम्हारी, धन्यवाद!

जग की डाल-डाल पर छाया
था मधु-ऋतु का वैभव,
वसुधा के कन-कन ने खेली
थी जब होली अभिनव,
मेरे उर के मूक गगन को
गुंजित कर जो तुमने गाया मधु-गान,
कृपा तुम्हारी, धन्यवाद!

दो क्षण सम्पुट अधरों को जो
तुमने दी खिलते शतदल-सी मुसकान,
कृपा तुम्हारी, धन्यवाद!

पूनम की शीतल किरनों में
वन-प्रांतर डूब गए,
जब जन-जन मन में सपनों के
जलते थे दीप नए,
युग-युग के अंधकार में तुम
मेरे लाए जो जगमग स्वर्ण-विहान,
कृपा तुम्हारी, धन्यवाद!

दो क्षण सम्पुट अधरों को जो
तुमने दी खिलते शतदल-सी मुसकान,
कृपा तुम्हारी, धन्यवाद!

जब प्रणयोन्माद लिए बजती
मुरली मनुहारों की,
घर-घर से प्रतिध्वनियाँ आतीं
गीतों-झनकारों की,
दो क्षण को ही जो तुमने आ
बसा दिया मेरा अंतर-घर वीरान,
कृपा तुम्हारी, धन्यवाद!

दो क्षण सम्पुट अधरों को जो
तुमने दी खिलते शतदल-सी मुसकान,
कृपा तुम्हारी धन्यवाद!

आ जाती जीवन-प्यार लिए
जब संध्या की बेला,
हर चैराहे पर लग जाता
अभिसारों का मेला,
दुनिया के लांछन से सोया
जगा दिया खंडित फिर मेरा अभिमान,
कृपा तुम्हारी धन्यवाद!

दो क्षण सम्पुट अधरों को जो
तुमने दी खिलते शतदल-सी मुसकान,
कृपा तुम्हारी धन्यवाद!

२३ फरवरी २००९

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