सपनों में जीना
कभी-कभी
अच्छा लगता है
सपनों में जीना।
दूर देश में
रात अकेले
नींद न आती है
ऐसे में
माँ की सूरत
थपकियाँ लगाती है
अच्छा लगता है
अपनों से
मिला दर्द पीना।
मान-मनौवल
हँसी-ठिठोली
चुहल और मनुहार
सूनेपन में
बेहद दुखता है
अनब्याहा प्यार
अच्छा लगता है
अपने घर का
आँगन-जीना।
सोचो
किसने इन आँखों की
नींद चुराई है
लगती है
हर चीज़ यहाँ
हो गई पराई है।
अपने आँगन बीच
खड़ी माँ
है असाध्य वीणा।
1 दिसंबर 2006