अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कृष्णानंद कृष्ण की रचनाएँ—

नया गीत—
जाने किसकी नज़र लगी

गीतों में—
गुनगुनाना उनका
चाँद उतर आया है
पूत गया परदेस
बदली कहाँ गाँव की माटी
सर्दियों के दिन
सपनों में जीना
हमारे गाँव में

 

गुनगुनाना उनका

दरवाज़े, खिड़कियों से
आँगन से पूछना
गुनगुनाना उनका क्यों बंद है?

सूनी-सूनी गलियाँ हैं
हतप्रभ दीवारें
मरे हुए लंबे से दिन
कटे हुए खेतों की
काट रही चुप्पी
कोई चुभो गया पिन
हँसिया से, गोरी से,
कंगन से पूछना
खनखनाना उनका क्यों बंद है?

हर घर का आँगन
परदेस हो गया
परदेसी हो गया साजन
दिन औ' महीने तो
देखते निकल गए
चुती ही रह गई छाजन
साजन से, छाजन से,
आँगन से पूछना
खिलखिलाना उनका क्यों बंद है?

1 दिसंबर 2006

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter