अनुभूति में
कन्हैयालाल
बाजपेयी की
रचनाएँ-
गीतों में-
अग्नि परीक्षा से
इतना कोई सगा नहीं है
गुलमोहर की छाँव में
बाँधो न हमें
हम नन्हीं सी झील
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इतना कोई
सगा नहीं है
इतना कोई सगा नहीं है
जितने गीत सगे हैं
रात रात भर अक्सर ये भी
मेरे साथ जगे हैं
बियाबान वन में भी पथ में
मेरा साथ किया है
और उम्र के किसी मोड़ पर
धोखा नहीं दिया है
मेरी तरह इन्हें भी गहरे
गहरे घाव लगे हैं
दुनिया ने जब जब मेरे
ऊपर विष बाण चलाये
मैं घुट कर रह गया मगर
ये गीत न चुप रह पाए
अपमानों की ज्वाला में ये
भी काफी सुलगे हैं
ये मेरे ही नहीं अनगिनत
दुखियों के साथी हैं
किसी राम की विरह व्यथा के
ये भी सम्पाती हैं
ये उनके संबल हैं, जो
अपनों से गए ठगे हैं
१ अप्रैल २०१६
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