अनुभूति में
कन्हैयालाल
बाजपेयी की
रचनाएँ-
गीतों में-
अग्नि परीक्षा से
इतना कोई सगा नहीं है
गुलमोहर की छाँव में
बाँधो न हमें
हम नन्हीं सी झील
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बाँधो न हमें
बाँधो न हमें
परिभाषाओं के पिंजरे में
हम गीत हंस हैं हमें चैन से उड़ने दो
हम ऊपर कहीं उड़ेंगे नीले अम्बर में
फिर कहीं दर्द की घाटी में खो जायेंगे
जल पाखी हैं जल में भी गोता मारेंगे
मन होगा तो सूखे तट पर भी गायेंगे
थक गए अगर
तो पल दो पल सो भी लेंगे
हर शाखा से सम्बन्ध हमारा जुड़ने दो
भावना, शब्द, स्वर, ताल, छंद, रस और बिम्ब
बचपन से साथ चले हैं यह विश्वास करो
हम गीति काव्य ही हैं पाणिनि के पूत नहीं
हममें जो पीड़ा है उसका अहसास करो
हम पर हैं नई
निगाहें, कई क्षितिज भी हैं
जिस तरफ हमारा जब जी चाहे मुड़ने दो
१ अप्रैल २०१६
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