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अनुभूति में कन्हैयालाल बाजपेयी की
रचनाएँ-

गीतों में-
अग्नि परीक्षा से
इतना कोई सगा नहीं है
गुलमोहर की छाँव में
बाँधो न हमें
हम नन्हीं सी झील

 

अग्नि परीक्षा से

कभी भाग्यवश और कभी
अपनों की इच्छा से
हमें गुज़रना पडा उम्र भर
अग्नि परिक्षा से

मीत मिले हँस कर हमसे
दुःख दे कर चले गए
हम अपनी ही भोली
भावुकता में छले गए
कुछ भी हासिल हुआ न हमको
ऊँची शिक्षा से

आदर्शों के सुख विहीन
पथ पर चलते चलते
आखिर कितने दिन तक
नंगे पाँव नहीं जलते
हम कब तक बचते षड्यंत्रों
भरी समीक्षा से

रेवड़ियाँ बाँटते रहे
अंधे चौराहों पर
हमें भरोसा रहा सिर्फ
अपनी ही बाँहों पर
दया बहुत मिल जाती यदि
ले लेते भिक्षा में

१ अप्रैल २०१६

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