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अनुभूति में कमलेश कुमार दीवान की रचनाएं

गीतों में-
अब अंधकार भी जाने कितने
आज़ादी की याद मे एक गीत
नहीं मौसम
दरबारों में खास हुए हैं
राम राम
लोकतंत्र का गान
लोकतंत्र की चिंता में
सब मिल सोचे रे भैया
 

  सब मिल सोचे रे भैया

आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी खींचातानी
बार..बार याद आए नानी।
आओ सब मिल सोचे रे भैया

ताम झाम तो बढ़े
पुटरिया ज्यों की त्यों है
टाबर ऊँचे हुए
झोपड़ियाँ ऐसी क्यों है
फक्कड़ ही रह गए आज
बस्ती बस्ती के लोग
कुछ बन गए अमीर
कुछेक मे बनने के संजोग
आओ सब मिल सोचे रे भैया

क्यों इतनी है, मनमानी
बार बार याद आए नानी।

घर आँगन जगमग करते पर
मन मे हुए अंधेरे
दुनिया कहती जाए सुन रे
ये माया के फेरे
बनते गए समुद्र
नदी भी न रह पाई छुद्र
सबके सब है धुत्त
रमैया फिर भी रहता क्रुध
मनाएँ आज़ादी के जश्न
ढुकरिया रुठीं क्यों है
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी है बेईमानी
बार बार याद आए नानी।

८ जून २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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