सब मिल सोचे रे
भैया आओ सब मिल सोचे रे
भैया
क्यों इतनी खींचातानी
बार..बार याद आए नानी।
आओ सब मिल सोचे रे भैया
ताम झाम तो बढ़े
पुटरिया ज्यों की त्यों है
टाबर ऊँचे हुए
झोपड़ियाँ ऐसी क्यों है
फक्कड़ ही रह गए आज
बस्ती बस्ती के लोग
कुछ बन गए अमीर
कुछेक मे बनने के संजोग
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी है, मनमानी
बार बार याद आए नानी।
घर आँगन जगमग करते पर
मन मे हुए अंधेरे
दुनिया कहती जाए सुन रे
ये माया के फेरे
बनते गए समुद्र
नदी भी न रह पाई छुद्र
सबके सब है धुत्त
रमैया फिर भी रहता क्रुध
मनाएँ आज़ादी के जश्न
ढुकरिया रुठीं क्यों है
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी है बेईमानी
बार बार याद आए नानी।
८ जून २००९ |