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अनुभूति में कमलेश कुमार दीवान की रचनाएं

गीतों में-
अब अंधकार भी जाने कितने
आज़ादी की याद मे एक गीत
नहीं मौसम
दरबारों में खास हुए हैं
राम राम
लोकतंत्र का गान
लोकतंत्र की चिंता में
सब मिल सोचे रे भैया
 

  दरबारों मे ख़ास हुए हैं

दरबारों में
खास हुए हैं
आम लोग सारे।

गलियारों में
पहरे
...पहरे
जनता दरवाज़ों पर ठहरे,
मुट्ठी भर जनतंत्र यहाँ पर
अधिनायक सारे,

राज निरंकुश
काज निरंकुश
इनके सारे बाज निरंकुश
लोक नहीं
मनतंत्र यहाँ पर
गणनायक हारे।

ठहर गए
कानून नियम सब
खाली सब आदेश
मुफलिस की
आँखों मे आँसू

हरकारे दरवेश,
ऊँच..नीच के भेद वही हैं
काले वही,
सफ़ेद वही है
स्वेच्छाचारी औ' अनिवारक
मणिवाहक सारे।

८ जून २००९

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