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अनुभूति में कमलेश कुमार दीवान की रचनाएं

गीतों में-
अब अंधकार भी जाने कितने
आज़ादी की याद मे एक गीत
नहीं मौसम
दरबारों में खास हुए हैं
राम राम
लोकतंत्र का गान
लोकतंत्र की चिंता में
सब मिल सोचे रे भैया
 

  राम राम

बंधु मेरे दासता के
स्वर वही हैं
स्वप्न आज़ादी के देखें
राम राम

क्या पता था,
आज अदना आदमी
लड़ लड़ मरेगा
खेत टुकड़े और रोटी के लिए
बाँट कर खाई गई जो आज तक
झोपड़ी,
दुःख और लगोंटी के लिए
बंधु मेरे,
दासता के स्वर वही हैं

स्वप्न आज़ादी के देखे
राम राम।

प्रेम की,
मनुहार की
हर्ष दुःख अस्वार की
ऐसी कतारें थी नही जब,
आस्थाओं की धरोहर
मान मर्यादाओं की दोगर
ऐसी पतवारें नहीं थी सब,
पार होते थे सभी उस नाव से
जो चरण रज से
अहिल्या हो सकी न
छूत शापित

चरण रज को तरसते
लात मिलती लाठियाँ और गोलियाँ भी
निश्चरों के यग्न
होते है सफल
बंधु मेरे दास्ता के स्वर वही है
स्वप्न आज़ादी के देखें
राम राम।

८ जून २००९

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