अनुभूति में
कमलेश कुमार दीवान
की रचनाएं
गीतों में-
अब अंधकार भी जाने कितने
आज़ादी की याद मे एक गीत
नहीं मौसम
दरबारों में खास हुए हैं
राम राम
लोकतंत्र का गान
लोकतंत्र की चिंता में
सब मिल सोचे रे भैया
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अब अंधकार भी
जाने कितने पथ धूल
धूसरित और दिशाएँ
हुई नयन से ओझल।
अब अंधकार भी
जाने कितने स्याह घने होंगे,
हम ढूँढ रहे हैं क्यों
अनंत के छोर
दुख के प्रहार अब
द्रवित नहीं करते हैँ।
नित नई वेदनाओं
के प्रवाह में लोग
सूखे अंतस से
क्रमिक नहीं झरते हैं।
दिल के सुराख भी
जाने कितनें और बड़े होंगें।
टुकड़ों टुकड़ों मे बटे हुए
कैसे एक देश बनाएँगें
सूखीं बगियाँ, मरते माली
कैसे एक फूल उगाएँगे
धन लुटा, अस्मिता नग्न हुई
नोंचे जाते पथ पर सुहाग
बसते संसार भी
जाने कितने उजड़ गए होगें
८ जून २००९ |