अनुभूति में
डॉ. कैलाश निगम की
रचनाएँ-
गीतों में-
आओ प्यार करें
इस कोने से उस कोने तक
कब तक और सहें
मीठे ज्वालामुखी
मेरे देश अब तो जाग
समय सत्ता |
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मेरे देश अब तो जाग
द्वार-आँगन-घर-नगर, चारों तरफ है आग,
मेरे देश अब तो जाग
विश्व विजयी हिन्द था, विश्वास भुजबल में,
सिद्धियों के थे अमित वरदान तप बल में,
भूमि यह सद्धर्म के आलोक पुरूषों की,
ज्योति-पथ का था हुआ संधान ऋषिकुल में,
छोड़ वीणा, बज रहा क्यों आज हिंसक राग ?
मेरे देश अब तो जाग!
कर्म का उद्देश्य सिमटा, सिर्फ संचय में,
लोग डूबे हैं यहां निज स्वार्थ की लय में,
लोभ ने ऐसा बदल डाला चरित्रों को,
मौन हैं सारे निकष गहरे अनिश्चय में,
खो रही संवेदनायें, मिट रहा अनुराग,
मेरे देश अब तो जाग!
सरहदों पर युद्ध, भीतर पल रहा आंतक,
घूमते हैं आत्मघाती दल यहाँ निःशंक,
आस्था के कोष में बाकी नहीं कुछ भी,
सोचता हित स्वयं का, सम्राट हो या रंक,
छीनने को बढ़े आतुर दूसरों का भाग,
मेरे देश अब तो जाग!
यह समय है, फिर सुनहरे पृष्ठ अपने खोल,
कृष्ण की गीता, तथागत को सुना फिर बोल,
प्रेम, समता, न्याय की पावन त्रिवेणी का,
एक अमृत तत्व हर धमनी-शिरा में घोल,
मौर्य का हो शौर्य तो चाणक्य का वैराग,
मेरे देश अब तो जाग!
७ जनवरी २०१३
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