अनुभूति में
डॉ. कैलाश निगम की
रचनाएँ-
गीतों में-
आओ प्यार करें
इस कोने से उस कोने तक
कब तक और सहें
मीठे ज्वालामुखी
मेरे देश अब तो जाग
समय सत्ता |
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मीठे ज्वालामुखी
अमृत-उत्सव के पहले ही ऐसा रंग चढ़ा
मन के काले भी अब उजले-
उजले होते हैं
ऐसी रस्साकशी कि सिर झुकते भूचालों के
भागीरथ के वशंज हैं, उद्गम घोटालों के
जनता खातिर राजा गूँगे-
बहरे होते हैं
चारों खम्भ व्यवस्था के होते डगमग-डगमग
संभावना सेतु भी ध्वस्त हुए लगते लगभग
विश्वासों के चेहरे उतरे-
उतरे होते हैं
सूरज सबका एक
किंतु घर बाहर रोज बँटे
प्यासा ही निर्मल घट ढोये, यूँ ज़िन्दगी कटे
हम भी चीजों जैसे मँहगे-
सस्ते होते हैं
मीठे ज्वालामुखी धधकते हैं, सो जाते हैं
उठते तो हैं ज्वार, लहर के संग हो जाते हैं
पुनर्जागरण के क्षण अंधे-
सपने होते हैं
७ जनवरी २०१३
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