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अनुभूति में डॉ. कैलाश निगम की
रचनाएँ-

गीतों में-
आओ प्यार करें
इस कोने से उस कोने तक
कब तक और सहे
मीठे ज्वालामुखी
मेरे देश अब तो जाग
समय सत्ता

 

कब तक और सहें

जैसे चाहे थे वैसे दिन, अभी नहीं आए
समझौतों की कसी साँकलें,
कब तक और सहें

अनायास खतरा बन जाती है हर राह-गली
निर्धन के घर सिर्फ धुआँ है, ऐसी हवा चली
आदरणीय हुई नटवरलालों की करतूतें
हर बल से ज्यादा ताकतवर धनपति, बाहुबली
बाल्मीकि, तुलसी की वाणी मिथ्या सिद्ध हुई
चौराहे पर सोच रहे हम
किसका हाथ गहें ?

वर्णाक्षर का ज्ञान नहीं, वे भी अध्यापक हैं
बन्दूकों-कट्टों वाले भी भाग्य-विधायक हैं
कानूनों को नचा सकें जो अपनी उँगली पर
वे ही ज्ञानी, वे ही सक्षम, वे ही लायक हैं
नंगे राजा के जुलूस में हुई मुनादी है,
जैसा कहे,
पालतू तोते होकर वही कहें,

जनता का हक गाया जाता केवल भाषण में
लोकतंत्र फल-फूल रहा केवल विज्ञापन में
रंगभूमि में दिखे युद्धरत पक्ष-विपक्ष मगर
दोनो के हिस्से तय हैं ऐश्वर्य विभाजन में
गूँज रही अन्तःकक्षों में सीख सयानों की
सिद्धान्तों को त्याग,
शक्ति-सत्ता के साथ रहें

आजादी का अर्थ आज केवल मनमानी है,
देशप्रेम, नैतिकता, जनसेवा बेमानी है
मन की धरती के गुण जाने कैसे बदल गये ?
बोते हैं आदर्श, उपजती बेईमानी है।
लोकतंत्र की नदी प्रदूषित भ्रष्टाचारों से
बड़े-बड़े हरिचन्द-युधिष्ठिर
इसमें नित्य बहें

७ जनवरी २०१३

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