अनुभूति में
ज्योति
खरे
की रचनाएँ-
गीतों में-
उँगलियाँ सी लें
जाती हुई सदी का
जेठ मास में
धुँधलाते पहचान प्रतीक
साँस रखी दाँव |
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साँस रखी दाँव
दहशत की
धुंध से घबराया गाँव
भगदड़---में---भागी---धूप
और छाँव
अपहरण
गुंडागिरी, खेत की सुपारी
दरकी जमीन पर मुरझी फुलवारी
मिट्टी को पूर रहे छिले
हुऐ पाँव
कटा फटा
जीवन खूँटी पर लटका
रोटी की खातिर गली-गली भटका
जीवन के खेल में साँस
रखी दाँव
प्यासों का
सूखा इकलौता कुआँ
उड़ रहा लाशों का मटमैला धुआँ
चुल्लू भर झील में डूब
रही नाँव
१३ मई २०१३
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