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अनुभूति में ज्योति खरे की रचनाएँ-

गीतों में-
उँगलियाँ सी लें
जाती हुई सदी का
जेठ मास में
धुँधलाते पहचान प्रतीक
साँस रखी दाँव

 

जेठ मास में

अनजाने ही मिले अचानक
एक दोपहरी जेठ मास में
खड़े रहे हम नीम के नीचे
तपती गरमी जेठ मास में

प्यास प्यार की लगी हुई
होंठ माँगते पीना
सरकी चुनरी ने पोंछा
बहता हुआ पसीना
रूप साँवला हवा छू रही
महकी नीम जेठ मास में

बोली अनबोली आंखें
पता माँगती घर का
लिखा धूप में उँगली से
ह्रदय देर तक धड़का
कोलतार की सड़क ढूँढ़ती
पिघली नीम जेठ मास में

स्मृतियों के उजले वादे
सुबह-सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओं के बाग़ खिले जब
टपकी नीम जेठ मास में

१३ मई २०१३

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