अनुभूति में
जिज्ञासा सिंह
की रचनाएँ-
गीतों में-
आँधियों की बस्तियों में
और बसंती ऋतु
भ्रम का झूला
समय से अनुबंध
हार में जीत
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समय से
अनुबंध
समय से अनुबंध मेरा हो गया है
युगों का संबंध मेरा हो गया है
है किया वादा न आगे वो बढ़ेगा
ठहरकर वो हाथ मेरा पकड़ लेगा
समझ लेगा कदम की आहट
सुनिश्चित मार्ग पर संग ही चलेगा
छोड़ना धारा में बीती बात है
खा रहा सौगंध मेरा हो गया है
मैं समय से स्वयं तो प्रतिघात लूँ
सूर्य जैसे नित्य नव सौगात लूँ
वो रुकेगा वो चलेगा साथ ग़र तो
नेह दूँ और स्नेह का अनुपात लूँ
फ़लसफ़ा दोनों तरफ़ का कारगर
बन रहा तटबंध मेरा खो गया है
हों बराबर भाव के बीजों का रोपण
खाद भी दोनों तराजू से हो अर्पण
स्वेद की बूँदों का है स्वागत सदा
शीश पर अपने बिठाता है समर्पण
त्याग और श्रम से उगाया सघन उपवन
उड़ रहा मकरंद मेरा हो गया है
१ सितंबर २०२३
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