अनुभूति में
जयकृष्ण राय तुषार की रचनाएँ-
गीतों में-
चेहरा तुम्हारा
पिता
धूप खिलेगी
फोन पर बातें न करना
बादलों के बीच में रस्ते
लोग हुए वेताल से
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धूप खिलेगी
धूप खिलेगी
हँसकर फूलों सी
कोहरा छँट जायेगा।
जल पंछी
डूबकर नहायेंगे
मौसम फिर बजरे पर गायेगा।
हाथों में हाथ लिए
मन में
विश्वास लिए चलना है,
जहाँ-जहाँ पर
उजास गायब है
बन करके दीप सगुन जलना है,
फिर हममें
से कोई सूरज बन
नई किरन नई सुबह लायेगा।
जीवन के
बासन्ती पन्नों पर
एक कलम चुपके से डोलेगी,
जो कुछ भी
अनकहा रहा अब तक
मन की उन परतें को खोलेगी,
गलबहियों के दिन
फिर याद करो
मन को एहसास गुदगुदायेगा।
टहनी पर
एक ही गुलाब खिला
इससे तुम आरती उतारना,
एक फूल
मुझको भी मान प्रिये!
जूडे में गूँथकर सँवारना,
जब भी ये फूल,
हवा छू लेगी
सारा आकाश महक जायेगा।
६ दिसंबर २०१०
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