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अनुभूति में हरिशंकर सक्सेना की रचनाएँ—

गीतों में-
अग्निगर्भा
अब तो जागिये
तीखी हवाएँ आ गईं
विकलांग प्रश्न
सदी की भूल
 

 

तीखी हवाएँ आ गईं

हाथ में कोड़ा लिये
तीखी हवाएँ आ गईं

फिर समय के वक्ष पर
छल छद्म के दलदल हुए
हाथ गीता पर रखा
फिर भी न गंगाजल हुए
1
आस्थाएँ क्रूरतम अभिशाप से
मुरझा गईं


यातनाओं के महाजन से
हमें भी ऋण मिला
अर्ध सामंती व्यवस्था का
यही है सिलसिला
1
लाल बहियों में उलझकर
पीढ़ियाँ घबरा गईं


राजपथ पर जो गए
वे लौटकर आए नहीं
सौम्यता पगडंडियों की
अब उन्हें भाए नहीं
1
लाजवंती धारणाएँ
किस कदर पथरा गईं

२७ दिसंबर २०१०

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