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अनुभूति में डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
उत्तम पुरुष
पता नहीं
मैं समर्पित बीज सा
स्तब्ध हैं कोयल

गीतों में-
ऋतुराज इक पल का
केवल यहाँ सरकार है
गंगोजमन
ज़िन्दगी
देख गोबरधन
निकला कितना दूर
पीटर्सबर्ग में पतझर
राजा के पोखर में
 

संकलन में-
गाँव में अलाव- जाड़े में पहाड़

  स्तब्ध है कोयल

स्तब्ध हैं कोयल कि उनके स्वर
जन्मना कलरव नहीं होंगे।
वक्त अपना या पराया हो
शब्द ये उत्सव नहीं होंगे।

गले लिपटा अधमरा यह साँप
नाम जिस पर है लिखा गणतंत्र
ढो सकेगा कब तलक यह देश
जबकि सब हैं सर्वतंत्र स्वतंत्र

इस अवध के भाग्य में राजा
अब कभी राघव नहीं होंगे।

यह महाभारत अजब-सा है
कौरवों से लड़ रहें कौरव
द्रौपदी की खुली वेणी की
छाँह में छिप सो रहे पांडव

ब्रज वही है, द्वारका भी है
किंतु अब केशव नहीं होंगे।

जीतकर हारा हुआ यह देश
माँगता ले हाथ तंबूरा
सुनो जनमेजय, तुम्हारा यज्ञ
नाग का शायद न हो पूरा

कोख में फिर धरा-पुत्री की
क्या कभी कुश-लव नहीं होंगे?

१२ जनवरी २००९

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