अनुभूति में
डॉ.
बुद्धिनाथ मिश्र
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
उत्तम पुरुष
पता नहीं
मैं समर्पित बीज सा
स्तब्ध हैं कोयल
गीतों में-
ऋतुराज इक पल का
केवल यहाँ सरकार है
गंगोजमन
ज़िन्दगी
देख गोबरधन
निकला कितना दूर
पीटर्सबर्ग में पतझर
राजा के पोखर में
संकलन में-
गाँव में अलाव-
जाड़े में पहाड़
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निकला कितना
दूर पहले तुम था,
आप हुआ फिर
अब हो गया हुजूर।
पीछे-पीछे चलते-चलते
निकला कितना दूर।
कद छोटा है, कुर्सी ऊँची
डैने बड़े-बड़े
एक महल के लिए न जाने
कितने घर उजड़े
वयोवृद्ध भी 'माननीय'
कहने को हैं मजबूर!
पूछ रहा मुझसे प्रतिक्रिया
अपने भाषण की
जिसको लिखकर पाई मैंने
कीमत राशन की
पाँव नही धरता ज़मीन पर
इतना हुआ गुरूर!
हर चुनाव के बाद आम
मतदाता गया छला
जिसकी पूँछ उठाकर देखा
मादा ही निकला
चुन जाने के बाद लगा
खट्टा होता अंगूर।
9
दिसंबर 2007 |