अनुभूति में
डॉ.
बुद्धिनाथ मिश्र
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
उत्तम पुरुष
पता नहीं
मैं समर्पित बीज सा
स्तब्ध हैं कोयल
गीतों में-
ऋतुराज इक पल का
केवल यहाँ सरकार है
गंगोजमन
ज़िन्दगी
देख गोबरधन
निकला कितना दूर
पीटर्सबर्ग में पतझर
राजा के पोखर में
संकलन में-
गाँव में अलाव-
जाड़े में पहाड़
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पता नहीं
पता नहीं सच है कि झूठ
पर लोगों का कहना है
मेरे प्रेम पगे गीतों को
उमर क़ैद रहना है।
ऐसी हवा बही है दिल्ली
पटना से हरजाई
सरस्वती के मंदिर में भी
खोद रहे सब खाई
बदले मूल्य सभी जीवन के
कड़वी लगे मिठाई
दस्यु-सुंदरी के समक्ष
नतमस्तक लक्ष्मीबाई
इसी कर्मनाशा में
कहते हैं, सबको बहना है।
इस महान भारत में अब है
धर्म पाप को नौकर
एक अरब जीवित चोले में
मृत है बस आत्मा भर
बाट-माप के काम आ रहे
हीरे-माणिक पत्थर
मानदेय नायक से भी
ज़्यादा पाते हैं जोकर
मुर्दाघर में इस सडाँध को
जी जीकर सहना है
घर के मालिक को ठगकर
नामर्दी के विज्ञापन से
पटी पड़ी दीवारें
होड़ लगी हैं कौन रूपसी
कितना बदन उघारे
पिछड़ेपन की बात
कि लज्जा नारी का गहना है।
लेकर हम संकल्प चले थे
तम पर विजय करेंगे
नई रोशनी से घर का
कोना-कोना भर देंगे।
लेकिन गाँव शहीदों के
अब भी भूखे अधनंगे
उन पर भारी पड़े नगर के
मन के भूखे नंगे
ऐसे में इस गीतकार को
बोलो क्या कहना है?
१२ जनवरी २००९ |