अनुभूति में
बृजेश द्विवेदी अमन
की रचनाएँ-
गीतों में-
अंतहीन पथ पर
आदमी अब भीड़ में
बहती रही नदी
बूढ़ा बरगद
माँ
चाहे छंदों सा बंधन
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बूढ़ा बरगद
बूढ़ा बरगद सूखा
पोखर
पंछी धूल नहाते।
सावन कजरी भादों अचरी
नहीं प्रभाती बोल
धीरे-धीरे चौपालों का
बदल गया भूगोल।
बालापन को
नानी के अब
किस्से नहीं सुहाते।
बाजारों की चकाचौंध में
ओलम अपनी भूले
अमुआ पीपल नीम डाल पर
दिखते नहीं हैं झूले
पगडण्डी की
बालाओं को
फैशन शो लुभाते।
६ अक्तूबर २०१४
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