अनुभूति में
बृजेश द्विवेदी अमन
की रचनाएँ-
गीतों में-
अंतहीन पथ पर
आदमी अब भीड़ में
बहती रही नदी
बूढ़ा बरगद
माँ
चाहे छंदों सा बंधन
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आदमी अब भीड़ में
अंधेर के आगे बुझी कंदील
होता जा रहा है
आदमी अब भीड़ में
तब्दील होता जा रहा है
बाँचते रघुवर नहीं अब
पत्थरों की वेदनाएँ
कौरवों सी हो रही हैं
भरत की संवेदनाएँ
धीरे-धीरे सूखती-सी
झील होता जा रहा है
लग रहे संबंध सारे
लीक से हटते हुए-से
ऊर्ध्वगामी हो रहे हम
मूल से कटते हुए-से
आसमां में चीखती सी
चील होता जा रहा है
भूलते हम यांत्रिकी में
पूर्वजों की मान्यताएँ
खोज में विज्ञान की अब
खो रही सारी प्रथाएँ
फैशनों के नाम पर
अश्लील होता जा रहा है
६ अक्तूबर २०१४
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