अनुभूति में
बृजेश द्विवेदी अमन
की रचनाएँ-
गीतों में-
अंतहीन पथ पर
आदमी अब भीड़ में
बहती रही नदी
बूढ़ा बरगद
माँ
चाहे छंदों सा बंधन
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अंतहीन पथ पर
अंतहीन पथ पर है
चलते
थके-थके से पाँव।
यंत्र सरीखे चलते-चलते
महीने बरस बिताते
हम हुये हैं सुई घड़ी की
लौट वहीं पर आते
हम यायावर ढूँढ रहे हैं
ठौर, ठिए और ठाँव
सीता के अंतस से पूछो
सभ्य व्यवस्था ढोना
कुंती के मानस से पूछो
सूर्यपुत्र का होना
अपने ही साये से रहती
कटी-कटी सी छाँव।
अंतहीन पथ पर हैं चलते
थके-थके से पाँव।
६ अक्तूबर २०१४
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