अनुभूति में
भोलानाथ
की रचनाएँ-
गीतों में-
उड़ रही है गंध
उन्माद
भैया जी
भेड़ियों
के पहरों में
समय कहाँ मुझको
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उन्माद
कब तक यह उन्माद चलेगा
कितना कौन पिये !
बाँह बाहुबल
झुठलाने को तुली हुई है खुली हथेली,
गाँठी गाँठी सधी हुई है रहमहीन वर्तुली पहेली,
अँगुली अँगुली खुली चुनौती
कितना
कौन जिये !
कब तक यह उन्माद चलेगा
कितना कौन पिये !
दया धर्म के
दिन झुठला कर बाँह चढी है नख की पीड़ा,
मन-मंसूबे-खोखल-करता-कुतर-रहा-दिल-घुन का कीड़ा,
छिन छिन छलनी होती छाती
कितना
कौन सिये !
कब तक यह उन्माद चलेगा
कितना कौन पिये !
१५ अप्रैल २०१३ |