अनुभूति में
भोलानाथ
की रचनाएँ-
गीतों में-
उड़ रही है गंध
उन्माद
भैया जी
भेड़ियों
के पहरों में
समय कहाँ मुझको
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भेड़ियों के
पहरों में
रहते हम शहरों में भेड़ियों के पहरों में
बन रहे निवाले हम रह रह के !
लारियों के अजनबी शिकारियों के हाथों हम
हीचे चीर हरण सह सह के !
दरबारी दरबार के नहीं
और न ही नवरत्न हैं उज्जैनी राज के
कौन सुने तर्जनी की पीड़ा
अंगूठे सब रत्न हुए राजा के ताज के
क्या कहिये हचर मचर बग्घी के पहिये
टूटेगी धुरी छोड़
हारे हम कह कह के !
यक्ष की पीडाएँ भूलकर
गढ़ने लगे कालिदास सूक्तियाँ अनूठी
फाड़ फाड़ मछली के पेट को
खोज रहे शाकुंतली अनुपम अंगूठी
खप गईं पीढियाँ, चढ चढ रेतीली सीढियाँ
सूख गये आँसू
आँखों से बह बह के !
गहरा है, नया नया घाव है
चुटुक वैदिया में पक पक के हो गया नासूर
जीते जी चींटियाँ लीलेंगी अजगर
मिटटी के शेर का क्या है कसूर
पत्थर क्या जानें साँसें पहचानें
छाती की पीड़ा
प्राणों को दह दह के !
१५ अप्रैल
२०१३ |