अनुभूति में
भोलानाथ
की रचनाएँ-
गीतों में-
उड़ रही है गंध
उन्माद
भैया जी
भेड़ियों
के पहरों में
समय कहाँ मुझको
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भैया जी
भैया जी बात अपनी
भीटर मत रोकिये ओंठों पर लाकर आँख में सजाइए !
दिल में रखना बहुत अच्छी बात है
पर दिल की दिलवालों
को सुनाइये !
अन्दर ही अन्दर
गुनगुनानें से क्या होगा चुग जाएँगी चिड़िया खेत,
देखते रह जाओगे ढेले सजेंगे बहुत मेले
पर समय सरक जायेगा
मुट्ठी से जैसे रेत, एक पंक्ति के बदले
जीवन भर गीतों में अपने आप के
बिरह मत बुलाइए !
देखता हूँ मैं
आपकी आँखों में उग रहे हैं नागफनियों के बंज़र,
और आप हैं कि गाये जा रहे हैं, आँखों की
लगी भीतर के मंजर,
आप खूब गाइये, झूम झूम गाइये
और नाचिये पर ख्याल रख
किसी और को न रुलाइये !
सजाइए अपने ही भीतर
काम कंदला के मंडप, साँसों में मन की शहनाइयाँ,
जन जन की ओठों में खूब धरा रस बोरे
गीत अब और नहीं धरिये तन्हाईयाँ,
निकालिए मुहूरत खरीदिये कंगना
और काँच की हरी हरी
चूडियाँ पहनाइए !
१५ अप्रैल
२०१३ |