अनुभूति में
भोलानाथ
की रचनाएँ-
गीतों में-
उड़ रही है गंध
उन्माद
भैया जी
भेड़ियों
के पहरों में
समय कहाँ मुझको
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समय कहाँ मुझको
सुनो सुनो भैया जी
समय कहाँ मुझको कुछ और कहूँ किसको
कोयल की रागिनी कानों में घोल रही मिश्री और क्या सुनूँ !
बाग़ और बगीचों में ठौर की अमुआँ के बौर की
मचली है गंध बाँसुरी बजाऊँ या
साँसो की सरगम में
रंग सा भिनूँ !
दिल में तरंगित हैं प्रणय गीत
फूट रहे आँखों में अँखुए अनार के
पुलकित है अंग अंग लौटा है फिर मौसम
बिम्ब वही लेकर बहार के
गा गा के फाग
खुशियाँ मनाऊँ
या कलियों की खुशुबू हो जाऊँ
चौकड़ियाँ भर भर के
बिरह बौर भीतर ही भीतर रुई सा धुनूँ !
उड़ती पतरोई सा मैं भी उड़ूँ
मन की कहूँ या उठते हाथों को देखूँ
या उनकी उँगलियों की उठती आवाजों में
खुद को मछली सा सेंकूँ
मंद मंद बहती
बयार में
बँसवट की छेड़ी सितार में
अनचीन्हीं छवियों की आँख में
रंगों के ख्वाब मैं आँख से बुनूँ !
रक्त की शिराओं में रह रह के
पनप रही कंठों में कजरी की प्यास
टेसुओं की रस भीनी टहनी खोज रहा
अंतर का बौराया अमलतास
अमरईया के नये
नये बिरवों की
नयी नयी शाखाओं के सिरवों की
कोंपल से खेलते चुनगुन
चिरैया के जत्थे मैं कैसे गिनूँ !
१५ अप्रैल
२०१३ |