अनुभूति में
अटल बिहारी वाजपेयी की रचनाएँ-
गीतों में-
क्या खोया क्या पाया
कदम मिला कर चलना होगा
दूध में दरार पड़ गई
दो अनुभूतियाँ
मनाली मत जइयो
मौत से ठन गयी
संकलन में-
गाँव में अलाव –
ना मैं चुप हूँ न गाता हूँ
मेरा भारत–
पन्द्रह अगस्त की पुकार
नया साल– एक बरस बीत गया
ज्योतिपर्व–
आओ फिर से दिया जलाएँ |
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दूध में दरार पड़ गई
खून
क्यों सफेद हो गया
भेद में अभेद खो गया
बँट गये शहीद, गीत कट गए
कलेजे में
कटार गड़ गई
दूध में दरार पड़ गई
खेतों
में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी,
व्यथित सी
वितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी
ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं गैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता,
तुम्हें वतन
का वास्ता।
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
८ दिसंबर
२००१ |