अनुभूति में
अटल बिहारी वाजपेयी की रचनाएँ-
गीतों में-
क्या खोया क्या पाया
कदम मिला कर चलना होगा
दूध में दरार पड़ गई
दो अनुभूतियाँ
मनाली मत जइयो
मौत से ठन गयी
संकलन में-
गाँव में अलाव –
ना मैं चुप हूँ न गाता हूँ
मेरा भारत–
पन्द्रह अगस्त की पुकार
नया साल– एक बरस बीत गया
ज्योतिपर्व–
आओ फिर से दिया जलाएँ |
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दो अनुभूतियाँ
पहली
अनुभूति: गीत नहीं गाता हूँ
बेनकाब चेहरे हैं,दाग बड़े गहरे
हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
पीठ मे छुरी सा चाँद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बँध जाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
दूसरी अनुभूति: गीत
नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती
स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
८ दिसंबर २००१ |