अनुभूति में
आशाराम त्रिपाठी की रचनाएँ—
गीतों में—
उजियारा कुछ मंद हो गया
ऐसा उपवन हो
कविता से
मुरझाई कली
हे बादल
अंजुमन में—
दरपन ने कई बार कहा है
सहसा चाँद उतर आता है
संकलन में—
लहर का कहर–
सुनामी लहरें
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उजियारा कुछ मंद हो गया
रोशन घर में
उजियारा कुछ मंद हो गया
शायद दीपक का तम से अनुबंध हो गया
आँगन में
आतंक दगा दरवाजों पर है
अधर सिले बंदिश जायज आवाजों पर है
छल फरेब में अगरी सियासत की नगरी में
मुँह जोरों के मजे
जुल्म मोहताजों पर है
आँखों से आँसू का ढलना बंद हो गया
शायद दीपक का तम से अनुबंध हो गया
मछलीघर
पर पहरे बगुलों की पातों के
सूरज चक्कर काट रहा काली रातों के
किसे कहे हम सगा दगा भर गई नजर में
अब तो माने बदल
गए रिश्तेनातों के
फिदा जुगुनुओं पर पूनम का चाँद हो गया
शायद दीपों का तम से अनुबंध हो गया
सूखे–सूखे
समझ–बूझ के सागर गहरे
मुँहचीन्हा है न्याय कान कुर्सी के बहरे
मुखर हुई पछतावे की रेखा माथे
पर
खिसक गए हाथों से
मौके कई सुनहरे
मन तहजीब पंसद बहुत स्वच्छंद हो गया
शायद दीपक का तम से अनुबंध हो गया
दीमक ने
पन्ने के पन्ने साफ कर दिए
ऐसे ऐसे जुर्म जिल्द ने माफ कर दिए
और कहें क्या खुद निगरानी की फितरत ने
सभी भरोसेमंद
गवाह खिलाफ कर दिए
सच की आवाजाही पर प्रतिबंध हो गया
शायद दीपक का तम से अनुबंध हो गया
१ जून २००६
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