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अनुभूति में आशाराम त्रिपाठी की रचनाएँ—

गीतों में—
उजियारा कुछ मंद हो गया
ऐसा उपवन हो
कविता से
मुरझाई कली
हे बादल

अंजुमन में—
दरपन ने कई बार कहा है
सहसा चाँद उतर आता है

संकलन में—
लहर का कहर– सुनामी लहरें

 

 

ऐसा उपवन हो

ऐसा उपवन हो जिसका हर दल हरियाली बाँटे
शाखा को शाखा फूलों को फूल कभी न काटे
अलि अवली की हर गुनगुन में
निजतामय स्वर लय हो
विहगों की हर चहक मोदमय नभ संचरण अभय हो
अंतर की यह ललक झलक रमणीक घरीक निहार लूँ
जी में आता है ऐसे उपवन के
पाँव पखार लूँ

विद्रुम दल बल सहित प्रेम से अश्रु अर्घ्य अरपाए।
सुमन समूहों की फूलन झूलन न दर्प जताए
उन्नत शैल शिखर पनियारे
बादल को विरमाएँ
बादल भी प्यासी अचेत क्यारी की प्यास बुझाएँ
क्यारी चाहे सबसे पहले मैं पड़ौस सिंगार लूँ
जी में आता है ऐसे उपवन के
पाँव पखार लूँ

गंधवाह बिन चाह सुबासित कर दे क्यारी क्यारी
डालीडाली पर बिखरे नित कलियों की किलकारी
स्वर्ग मैदिनी पर आकर
कण कण को स्वयं सँवारे
स्वर साधिका पिकी का स्वर अमराई में गुंजारे
हर समीर का तार–तार बोले मैं साज संवार लूँ
जी में आता है ऐसे उपवन के
पाँव पखार लूँ

सेमर भले सयाना हो पर शुक को सच बतलाए
किंसुक अपने रूप रंग अनरूप सुफल बिखराए
मैला जहरीला जल
हँसती बगिया को न सींचे
रखवाली भी रहे एकरस कभी न आँखें मीचे
माली कहे तनिक भीतर की सकरी गली बुहार लूँ
जी में आता है ऐसे उपवन के
पाँव पखार लूँ।

सत्ताधीश मौसमों की क्रम से हो आवाजाही
आतप शीत किसी चेहरे पर पोते नहीं स्याही
पौन पखेरू डालडाल से
हिलमिल कर बतियाएँ
यौवन भरे हरे खेतों में नित उमंग बिखराएँ
बासंती वैभव बोले तिनके को तनिक दुलार लूँ
जी में आता है ऐसे उपवन के
पाँव पखार लूँ

लाली लेकर भोर रोज पूरब संग खेले होली
फुनगी पर बैठी गौरेया खेले आँख मिंचोली
किसी वर्ण का कोई पर्ण हो
उपवन उसका अंगी
सहज नेह रस रहे एक रस तज निज पर की तंगी
झुक कर झंझावात कहे अपनी गलती स्वीकार लूँ
जी में आता है ऐसे उपवन के
पाँव पखार लूँ

१ जून २००६

 

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