अनुभूति में डॉ.
अरुण
तिवारी गोपाल की
रचनाएँ- गीतों में-
गाँव की अब लड़कियाँ
फिर अजुध्या खिलखिलाई
भरगड्डा की मोड़ी
रतीराम की दुल्हन
लाख बनवा लो किला |
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रतीराम की
दुल्हन
रतीराम की दुल्हन काटे
चढ़े क्वाँर की धान
बरसाती जमुना सी, जूड़ा पूरा खोले है
फसल काटती फसल फसल से जादा डोले है
हिरनी सहमे खड़ा मेड़ पर
ताक रहा शैतान
धान नहीं वो खून पसीना चुनने आई है
बिटिया का गौना, अम्मा की यही दवाई है
नहीं मिले मजदूर अकेले
जुटी लगाये जान
कोंछे से ही पोंछ पसीना, बिजना कर लेती
छाँह हमारी दुश्मन हमको कहाँ छाँह देती
हँसे पीठ पर दबा पेट
है कितना बेईमान
बूढ़ा बाल रंगे भौजी कहकर खीसें बाये
सरके बिस्तर की बातों के नश्तर सरकाये
रतीराम को दूर भेज
मँगवाए बीड़ी पान
१ जुलाई २०२३ |