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अनुभूति में डॉ. अरुण तिवारी गोपाल की रचनाएँ-

गीतों में-
गाँव की अब लड़कियाँ
फिर अजुध्या खिलखिलाई
भरगड्डा की मोड़ी
रतीराम की दुल्हन
लाख बनवा लो किला

 

लाख बनवा लो किला

लाख बनवा लो किला, महल तो रानी से है
घर अगर घर है मियाँ
उसकी मेहरबानी से है

चाँद माथे धर के पूजे, क्षर अमा के सब गुमां
एक शव को शिव करे है, चैत का व्रत रख उमा
हो तुम्हीं देवी, पुजारिन, संगिनी, रिश्ता, अजब
जन्म से कुछ भी नहीं
जन्मों जनम वानी से है

चादरें औकात की तुरपीं तुम्हीं ही तो छिदीं
दंश सारे ही सहे, नीले निशानों से लदीं   
दे न पाये कुछ उधारी ही बढ़ी जन्मों जनम
स्वर्ग तो तुलसी से है
क्या रात की रानी से है

१ जुलाई २०२३

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