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अनुभूति में डॉ. अरुण तिवारी गोपाल की रचनाएँ-

गीतों में-
गाँव की अब लड़कियाँ
फिर अजुध्या खिलखिलाई
भरगड्डा की मोड़ी
रतीराम की दुल्हन
लाख बनवा लो किला

 

फिर अजुध्या खिलखिलाई

फिर अजुध्या खिलखिलाई फिर लला ने गोद पाई
मैं रही हरदम अभागिन
फिर अभागिन ही कहाई

सास माँ होती नहीं है भोग कर मैं कह रही हूँ
देह भर हूँ पर न अपनी उनकी वैदेही रही हूँ
दोनों घर की मालकिन मैं
दोनों घर में थी पराई

घर की सीता को बलायें पूजते बाहर शिलायें
घर में रावन राम बाहर तारो सबरीं अहिल्यायें
दिल में पहले से धरी थी
बात धोबी की बताई

कैसे रखलें मन पे पत्थर अब तो मनही हुआ पत्थर 
झूठ कहते संगिनी तुम सिर्फ दासी सिर्फ बिस्तर
सूरजों तेरे अंधेरों में
उमर भर बिलबिलाई

बाप पति बेटों के घर में मैं रही हरदम सफर में
साँचको क्या आँच बहनों छल जलेगा जल के घर में 
लखन रेखायें शरम से
खुद धरा में हैं समाई

१ जुलाई २०२३

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