अनुभूति में
अमरनाथ श्रीवास्तव की
रचनाएँ- नए गीत
अनुपस्थिति मेरी
जहाँ आँखों में रहा
प्यादे से
वज़ीर
फाँस जो छूती
रगों को
मैं
बहुत खुश हूँ
गीतों में-
पुण्य फलीभूत हुआ
लोग खड़े हैं इंतज़ार में
सारी रैन जागते बीती
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अनुपस्थिति मेरी
जहां-जहां मैं रहा उपस्थित अंकित
है
अनुपस्थिति मेरी।
क्रान्ति चली भी साथ हमारे
दोनों हाथ मशाल उठाए
मेरे कंधों पर वादक ने
परिवर्तन के बिगुल बजाए
सपनों में चलने की आदत
वंशानुगत रही तो पहले
अब लोगों की भौ पर बल है मुझे मिली जब
जागृति मेरी।
सिमट गया है सब कुछ ऐसे
टूटे तरु की छाया जैसे
भूल भुलैया लेकर आये
शुभ चिंतक हैं कैसे-कैसे
मिथक, पुराण, कथा बनती है
आगे एक प्रथा बनती है
क्रास उठाए टँगी घरों में ईसा जैसी
आकृति मेरी।
कूट उक्ति या सूक्ति,
सभी ने सिखलाए मुझको अनुशासन
मेरे आगे शकुनि खड़े हैं
ताल ठोंक हँसता दु:शासन
एक पराजय मोह जगाते
कुरुक्षेत्र मुझको झुठलाते
जिसके सधे वाण थे मुझको वही मनाता
सद्गति मेरी।
9 अगस्त 2007 |